दर्शनशास्त्र यानी फ़िलोशॉपी क्या है?
डिमाक्रिटिस ने एक बार कहा था कि वह फारस का राजा बनने के बजाय प्रकृति का कोई नया कारण खोजना पसंद करेगा।
नया कारण खोजना मतलब दार्शनिक बनना।
दर्शनशास्त्र का मतलब है — जीवन और अस्तित्व से जुड़े मूलभूत सवालों के बारे में सोचना और जवाब ढूंढना।
यह धर्म नहीं है। यह नियमों की किताब नहीं है।
बल्कि यह सवाल पूछने और उनके जवाब खोजने की कला हैं।
क्या सही है, क्या गलत?
क्या ईश्वर है?
मैं जो महसूस करता हूँ, क्या वह सच है?
क्या हम स्वतंत्रत है या सब कुछ पहले से तय है?
दर्शनशास्त्र कोई तय जवाब नहीं देता। यह आपको सोचने के लिए आज़ाद करता है। और अपने अनुसार जवाब तैयार करने की सहूलियत देता हैं।
दर्शनशास्त्र सिर्फ क्लासरूम की चीज़ नहीं है, यह रसोई, खेत, ऑफिस और सड़क तक की बात है।
जब एक किसान आकाश की ओर देखता है और कहता है,
“सब भगवान की मर्ज़ी है”—
तो वह उसका गढ़ा एक दर्शन है या कहीं से अर्जित किया हुआ।
जब एक बच्चा पूछता है, “माँ, हम मर क्यों जाते हैं?” वह बच्चा सवाल कर रहा है मतलब वह एक तरह का दार्शनिक सवाल कर रहा है।
कहते है कि " एक दार्शनिक जीवन भर एक नन्हें बच्चे जैसा जिज्ञासु बना रहता है।"
दर्शन हर इंसान के भीतर जन्म से मौजूद होता है। फर्क बस इतना है कि कुछ लोग इन सवालों को दबा देते हैं,समाज के दबाव में या ख़ुद के आलस के कारण
हम में से अधिकतर लोग रोज़ काम, पैसे, रिश्तों और समाज की जिम्मेदारियों में उलझे रहते हैं। लेकिन कभी न कभी सबके भीतर एक खालीपन जागता है —
“मैं यह सब क्यों कर रहा हूँ?”
“क्या वाकई इससे खुशी मिलेगी?”
“मुझे कौन-सी दिशा में जाना चाहिए?”
दर्शनशास्त्र यही बताने आता है — कि जीवन केवल "करने" की चीज़ नहीं, "समझने" की भी चीज़ है।
यह आपके सोचने का तरीका बदलता है।
यह आपको सिखाता है कि दूसरे के विचारों को समझो, भले ही उनसे सहमत न हो।
यह बताता है कि आप हर बात पर प्रतिक्रिया देने की बजाय विचार कर सकते हैं।
यह सिखाता है कि खुशी बाहर नहीं, भीतर होती है — और उसे समझने के लिए पहले खुद को समझना ज़रूरी है।
सुकरात ने कभी कोई किताब नहीं लिखी। वो बस सवाल पूछते थे।
महावीर और बुद्ध ने सरल जीवन जिया और कठिन सवालों के सीधे उत्तर दिए।
मुझे लगता है जीवन मात्र एक अनुभव है किसी के लिए अच्छा किसी के लिए बुरा कोई अंतिम लक्ष्य नहीं है। सब कुछ पाने की कोशिश जो मन करें करने की हिम्मत और अनुभव करना ही जीवन है। यह न किसी भगवान ने बनाया है न ही समाज ने यह बस विज्ञान है। जिस प्रक्रिया से जीवन उत्पन्न हुआ है मात्र बस एक संयोग है । लेकिन अब यह संयोग घट चुका है तो इसका अनुभव करना चाहिए।
"जीवन मात्र एक अनुभव है"
रोज़ खुद से सवाल पूछें।
क्या तुम नियति में विश्वास करते हो?
क्या मैं वही हूँ जो मैं सोचता हूँ?
क्या सबके लिए एक ही ‘सच’ होता है?
अगर मैं कल मर जाऊँ, तो आज क्या सच में ज़िंदा हूँ?
आप देखेंगे कि आपकी सोच और व्यक्तित्व में धीरे-धीरे गहराई आने लगेगी।
दर्शनशास्त्र कोई विषय नहीं, यह एक विचार है।
यह आपकी सोच में ठहराव लाता है, गहराई लाता है और सबसे ज़रूरी — आपको खुद से जोड़ता है।
"जो अपने जीवन के बारे में सवाल नहीं करता, वह सच में जी ही नहीं रहा।" — सुकरात
तो अगली बार जब आपके मन में कोई ऐसा सवाल आए जो सीधा-सरल न हो —
तो उसे नज़रअंदाज़ मत कीजिए।
वह आपके अंदर का दार्शनिक बोल रहा है।