From Sex to Samadhi: Osho’s Philosophy to Inner Revolution
सक्सेस, सेक्स और साइलेंस - तीन शब्द, जिनसे पूरी दुनिया डरती है, लेकिन ओशो इन्हीं शब्दों में आज़ादी देखते हैं।"
हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ सफलता का मतलब सिर्फ दौड़ में आगे निकलना है।
जहाँ सेक्स पर बात करना अश्लीलता माना जाता है।
और जहाँ मौन को कमजोरी समझा जाता है।
लेकिन ओशो की सोच इन सामान्य धारणाओं को पूरी तरह उलट देती है।
उनके लिए ये तीनों चीज़ें - जीवन को भीतर से समझने की कुंजी हैं।
सक्सेस:
“अगर तुम्हारी सफलता तुम्हें भीतर से शांत नहीं करती,
तो वो सिर्फ एक और शोर है - थोड़ा महंगा, थोड़ा चमकीला।”
ओशो के लिए सफलता का मतलब है - स्वयं को जानना।
अपने भीतर की बेचैनी को समझना।
और उस जीवन को जीना जो तुम्हारे मन, शरीर और आत्मा - तीनों को सुकून दे।
सेक्स:
“सेक्स कोई पाप नहीं है,
पाप तो यह है कि तुम इसे बिना समझे, सिर्फ दबाते या भोगते रहो।”
सेक्स के बारे में ओशो जितनी खुली और गहरी बातें करते हैं,
शायद ही कोई आध्यात्मिक गुरु करता हो।
वे कहते हैं कि सेक्स ऊर्जा है - अगर समझदारी और जागरूकता के साथ जिया जाए,
तो यही ऊर्जा ध्यान और समाधि का द्वार बन सकती है।
एकांत:
“मौन कोई खालीपन नहीं है -
यह वो जगह है जहाँ आत्मा बोलती है, और अहंकार चुप हो जाता है।”
मौन का मतलब सिर्फ बोलना बंद करना नहीं।
मौन का मतलब है -
हर उस आवाज़ से पीछे हट जाना जो तुम्हें असली ‘तुम’ से दूर कर रही है।
ओशो हमें एक ऐसे जीवन की ओर ले चलते हैं
जहाँ हम बिना डर के सवाल कर सकें,
बिना शर्म के महसूस कर सकें,
और बिना शोर के जी सकें।
शायद यही आज़ादी है।
शायद यही ध्यान है।
शायद यही ज़िंदगी है।