Have you ever had a dream come true - and yet felt nothing inside?
क्या आपने कभी कोई सपना पूरा किया है - और फिर भी अंदर कुछ महसूस ही न हुआ हो?
क्या हम कभी संतुष्ट हो पाएंगे?
मैं छोटी-छोटी खुशियाँ मनाना भूल गया हूँ।
जब कभी मैंने 10K फॉलोअर्स का सपना देखा था, तो सोचा था कि उस दिन बहुत खुशी होगी। लेकिन जिस दिन वो पूरे हुए, मन में कोई उत्साह नहीं था। दिमाग तब 20K और 30K की तरफ दौड़ रहा था। फिर जब 30K हुए, तब भी अगले लक्ष्य की ओर बढ़ चला।
मुझे पता है कि छोटी जीतों को सेलिब्रेट करना चाहिए, लेकिन मैं नहीं कर पाता।
अगर कोई लक्ष्य समय से पहले भी पूरा हो जाए, तो भी उस दिन मेरे भीतर कोई विशेष भाव नहीं होता। मैं सीधे अगले लक्ष्य की प्लानिंग में लग जाता हूँ।
कभी-कभी लगता है - क्या मैं कभी संतुष्ट हो पाऊँगा?
क्या मेरी इस भूख का कोई अंत होगा?
क्या ये दृष्टिकोण ठीक है? या फिर मैंने “जीने” की कला कहीं खो दी है?
क्या मैं कभी ख़ुद से खुश रह पाऊंगा?
कमेंट में बताइए!
अगर आप भी कभी ऐसा महसूस करते हैं, तो आइए बात करें। शायद हम एक-दूसरे से कुछ सीख सकें।